मधुबाला की अंतिम पांचवीं किस्त
निष्कर्ष
अब भी नयी पीढ़ियां जिसके भित्ति -चित्र लटकाती है ,
घर में घुसते सबसे पहले दृष्टि उसी पर जाती है ।
मधुशाला में , नटशाला में ,सुर संगीतालय में है ,
वह आंखों में पट्टी बांधे देखो न्यायालय में है ।
मधु का चित्र नहीं बनता है ,मधुशाला का कैसा चित्र ?
अरे चषक को कौन देखता ? मधुबाला के चित्र विचित्र ।
मधुशाला जड़ ,मधु जड़ ,जड़ है रौनक ,जड़ है मधु-प्याला
पीनेवाला भी अधजड़ है , पूरी जीवित मधुबाला ।।
जन्म न लेती और न मरती ,ना बूढ़ी हो पाती है ,
मधुबाला कहते ही मन में षोड़सबाला आती है ।
सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
चाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।
लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।
Sunday, December 27, 2009
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बहुत अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteजन्म न लेती और न मरती ,ना बूढ़ी हो पाती है ,
ReplyDeleteमधुशाला कहते ही मन में षोड़सबाला आती है ।....waah
सभी टिप्पणिकारों का हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteनववर्ष की असंख्य शुभकामनाएं स्वीकारें।
मधुशाला जड़ ,मधु जड़ ,जड़ है रौनक ,जड़ है मधु-प्याला
ReplyDeleteपीनेवाला भी अधजड़ है , पूरी जीवित मधुबाला ।।
sunder abhivyakti
ReplyDeletemadhubala ko bilkula naye andaz ,ein pesh kiya hai sir. badhai..
ReplyDeleteलोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
ReplyDeleteयही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।
Behad sundar...!
सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
ReplyDeleteचाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।
अमर पंक्तियां
"सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
ReplyDeleteचाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।
लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।"
वाह वह - बहुत खूब - आपके ब्लॉग पर आना सुखद लगा