Sunday, December 27, 2009

मधुबाला -पांच

मधुबाला की अंतिम पांचवीं किस्त
निष्कर्ष

अब भी नयी पीढ़ियां जिसके भित्ति -चित्र लटकाती है ,
घर में घुसते सबसे पहले दृष्टि उसी पर जाती है ।

मधुशाला में , नटशाला में ,सुर संगीतालय में है ,
वह आंखों में पट्टी बांधे देखो न्यायालय में है ।

मधु का चित्र नहीं बनता है ,मधुशाला का कैसा चित्र ?
अरे चषक को कौन देखता ? मधुबाला के चित्र विचित्र ।

मधुशाला जड़ ,मधु जड़ ,जड़ है रौनक ,जड़ है मधु-प्याला
पीनेवाला भी अधजड़ है , पूरी जीवित मधुबाला ।।

जन्म न लेती और न मरती ,ना बूढ़ी हो पाती है ,
मधुबाला कहते ही मन में षोड़सबाला आती है ।

सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
चाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।

लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।

9 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना। बधाई।

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  2. जन्म न लेती और न मरती ,ना बूढ़ी हो पाती है ,
    मधुशाला कहते ही मन में षोड़सबाला आती है ।....waah

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  3. सभी टिप्पणिकारों का हार्दिक धन्यवाद!
    नववर्ष की असंख्य शुभकामनाएं स्वीकारें।

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  4. मधुशाला जड़ ,मधु जड़ ,जड़ है रौनक ,जड़ है मधु-प्याला
    पीनेवाला भी अधजड़ है , पूरी जीवित मधुबाला ।।

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  5. madhubala ko bilkula naye andaz ,ein pesh kiya hai sir. badhai..

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  6. लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
    यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।
    Behad sundar...!

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  7. सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
    चाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।

    अमर पंक्तियां

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  8. "सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
    चाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।

    लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
    यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।"
    वाह वह - बहुत खूब - आपके ब्लॉग पर आना सुखद लगा

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