Friday, October 23, 2009

इस इतिहास में जिसमें सबकी पीठें घायल

पेड़ों पर गाऊं , नदियों पर छंद लिखूं !
या विघ्न-अभय महलों पर फेंक कमंद लिखूं ?

जब उधर भूख पर नई कथा बनती हो
मेरे विलास की रात इधर मनती हो
मैं इतना कभी तटस्थ नहीं हो सकता
तुम सुनो विषमता सुनो अगर सुनती हो
आहत पैरों तपती रेतों जब झुलस गया
तब क्या पपड़ल होंठों से रस मकरंद लिखूं !

है उधर तनी पीठों के पीछे गादी
इस तरफ सिर्फ रीढ़ों की बर्बादी
सर कहां उठे छत घुटनों से नीचे है
क्या जाने कैसे यहां बसी आबादी
कल यहां जले घर ,लुटीं औरतें ,युवक मरे
कैसे धुंधयाती बस्ती को सानंद लिखूं ?

ले गए लूटकर घर की जो मर्यादा
था अलंकरण का उन्हीं स्वजन का वादा
पूछे वजीर से कौन ,कहां हंै हाथी घोड़े
राजा खुद ही जहां बना हो प्यादा
इस इतिहास में जिसमें सबकी पीठें घायल
किसे मैं राणा और किसे जयचंद लिखूं ?
51183/81283

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