Sunday, December 27, 2009

मधुबाला -पांच

मधुबाला की अंतिम पांचवीं किस्त
निष्कर्ष

अब भी नयी पीढ़ियां जिसके भित्ति -चित्र लटकाती है ,
घर में घुसते सबसे पहले दृष्टि उसी पर जाती है ।

मधुशाला में , नटशाला में ,सुर संगीतालय में है ,
वह आंखों में पट्टी बांधे देखो न्यायालय में है ।

मधु का चित्र नहीं बनता है ,मधुशाला का कैसा चित्र ?
अरे चषक को कौन देखता ? मधुबाला के चित्र विचित्र ।

मधुशाला जड़ ,मधु जड़ ,जड़ है रौनक ,जड़ है मधु-प्याला
पीनेवाला भी अधजड़ है , पूरी जीवित मधुबाला ।।

जन्म न लेती और न मरती ,ना बूढ़ी हो पाती है ,
मधुबाला कहते ही मन में षोड़सबाला आती है ।

सबके सपने में आती है सबके मन में रहती है ,
चाहे मन बंजर हो वह तो ,अमिय-सरित सी बहती है ।

लोक है मधुशाला तो लौकिक ललक ,लालसा ,लोभ भी हो ,
यही सोचकर परलौकिक ने भिजवायी है ‘ मधुबाला ‘ ।

Monday, December 21, 2009

मधुबाला -चार

भारतीय परिदृश्य मधुबालाओं और उनकी चर्चा से भरा हुआ है। मधुबाला अंग्रेजी में बार गर्ल है। एक मधुबाला वह भी थी जो आज तक अपने सौंदर्य और अभिनय के लिए जानी जाती है। जिसका दुखांत हुआ..प्रेम की असफलता और तरस का दाम्पत्य उसके हिस्से में रहा । मुगलेआजम की अनारकली ही जैसे उसका पर्याय बन गई।
पांच हिस्सों में विविध मधुबाला-प्रसंग ।
प्रस्तुत है..मधुबाला- चार.



मधुबाला -चार


इसीलिए अस्सी के होकर
देवानंद हैं अठरा के ,
क्योंकि हर नवबाला में वह
पा जाते हैं ‘ मधुबाला ‘।



क्यों हुसैन मकबूल फिदा की
गजगामिनी माधुरी बनी ?
वे भी देख रहे थे उसमें
अगली पिछली ‘मधुबाला ‘ ।






दादामुनि की बनी नायिका
नाथ बने छोटे भैया ,
सबकी नैया भींग भागकर
डुबा गई फिर ‘ मधुबाला ‘।




दादा के कमरे में लटकी
पापा के कमरे में है ,
बच्चों के कमरों में देखी
सबने लटकी ‘ मधुबाला ‘।






कितनी सजी हुई हैं उसके
चित्रों से अध्ययनशाला ,
जैसे विद्या में रस भरती
लटके लटके मधुबाला ।

Thursday, December 3, 2009

मधुबाला -तीन

भारतीय परिदृश्य मधुबालाओं और उनकी चर्चा से भरा हुआ है। मधुबाला अंग्रेजी में बार गर्ल है। एक मधुबाला वह भी थी जो आज तक अपने सौंदर्य और अभिनय के लिए जानी जाती है। जिसका दुखांत हुआ..प्रेम की असफलता और तरस का दाम्पत्य उसके हिस्से में रहा । मुगलेआजम की अनारकली ही जैसे उसका पर्याय बन गई।
पांच हिस्सों में विविध मधुबाला-प्रसंग ,

प्रस्तुत है..मधुबाला- तीन







पुरुषों की प्रत्येक सफलता
के पीछे ‘मधुबाला‘ एक ,
नहीं चाहता कौन बताओ
‘मधुबाला‘ से प्याला एक ?



नए रूप में ,नए वेष में ,
युग युग में है ‘ मधुबाला ‘ ,
कालातीत है ,अविनासी है ,
सीमापार है ‘ मधुबाला ‘ ।



मधुशाला संसार ,है प्याला देह
प्राण है मधु -हाला,
गुरु बनकर हर देह में भरती
जीने का रस ‘मधुबाला‘।

ताजमहल वह बनवाती है ,
सरकारें गिरवाती है ,
वह मुमताज है , पामेला भी है ,
है मायावी ‘मधुबाला‘।

कर ना पाई कुछ अकबर के
नयनों की भीषण ज्वाला ,
‘ प्यार किया तो डरना क्या ‘
यह खुलकर गा गई ‘मधुबाला‘।

Saturday, November 21, 2009

मधुबाला - दो

भारतीय परिदृश्य मधुबालाओं और उनकी चर्चा से भरा हुआ है। मधुबाला अंग्रेजी में बार गर्ल है। एक मधुबाला वह भी थी जो आज तक अपने सौंदर्य और अभिनय के लिए जानी जाती है। जिसका दुखांत हुआ..प्रेम की असफलता और तरस का दाम्पत्य उसके हिस्से में रहा । मुगलेआजम की अनारकली ही जैसे उसका पर्याय बन गई।
पांच हिस्सों में विविध मधुबाला-प्रसंग प्रस्तुत है..मधुबाला- दो



‘अरुण ये मधुमय देश ‘ कहा क्यों
मधु-प्रसाद जयशंकर ने ?
किसे ‘ जुही की कली ‘ कहा था
सरस निराला के स्वर ने ?

‘चारु चंद्र की चंचल‘ किरणों
में बैठा था ‘ साधक ‘ कौन ?
गुप्त मैथिलीशरण बताएं
मधु-चंद्रिका का आशय मौन ।

किसकी संस्मृति में नौका ले
करने निकले पंत विहार ?
छायावादी कवि करते थे
किसकी छाया में अभिसार ?

काहे ‘मधुशाला‘ लिख बैठे
लाला हरीवंश बच्चन ?
वे थे ‘ मधुबाला ‘ के घायल
कहते हैं सारे लक्षण ।

पी लेते वे घर में छुपकर
क्यों जाते थे ‘ मधुशाला ‘ ?
भुतहा मधुशाला लगती यदि
वहां न होती ‘मघुबाला ‘।

Saturday, November 7, 2009

मधुबाला -एक

भारतीय परिदृश्य मधुबालाओं और उनकी चर्चा से भरा हुआ है। मधुबाला अंग्रजी में बार गर्ल है। एक मधुबाला वह भी थी जो आज तक अपने सौंदर्य और अभिनय के लिए जानी जाती है। जिसका दुखांत हुआ..प्रेम की असफलता और तरस का दाम्पत्य उसके हिस्से में रहा । मुगलेआजम की अनारकली ही जैसे उसका पर्याय बन गई।
पांच हिस्सों में विविध मधुबाला-प्रसंग प्रस्तुत है..

मधुबाला -एक

दुनिया भर के मधु-प्रेमी गण
मधुशाला में आ बैठे ,
सबको हंसहंस लुभा रही है
मधु से मादक मधुबाला

मधुशाला में मदतम मधु के
भांति भांति के घटक भरे ,
मधुशाला की प्राण है लेकिन
चलित-चषक सी मधुबाला ।

आंखों का सुख ,मन का सुख है
कण्ठ तरल करनेवाली ,
शीश-चूल से चरण शिरा तक
मधुकंपन भरने वाली ।

पहुंच उदर में मस्तक तक तो
जाती बहुत बाद हाला ,
पलक झपकते मंद हृदय में
गति भर देती मधुबाला ।

कौन उठाने जाता प्याला ,
सूनी रहती मधुशाला ,
अगर न भीतर हंसती मिलती
इठलाती सी मधुबाला ।

क्रमशः

Tuesday, October 27, 2009

कहां गए वो पागल बादल

कहां गए वो पागल बादल ?

आसमान पर छाने वाले ,
सूरज को ढंक जाने वाले ,
दिन को रात बनाने वाले ,
मृगनयनी की आंख का काजल ।
-कहां गए वो पागल बादल ?

मिट्टी को महकाने वाले ,
नई पौद उकसाने वाले ,
तपती तपन बुझाने वाले ,
मजदूरों की टाट की छागल ।
- कहां गए वो पागल बादल ?

तरसे तो फिर बरसे झम झम ,
डाली डाली झूमी छम छम ,
धूम मचाते बच्चे धम धम ,
बुड्ढों की तेवरियों में बल ।
- कहां गए वो पागल बादल ?

गली गली बन जातीं नदियां ,
रेलों में बह जातीं बदियां ,
बीत गईं वो सादी सदियां ,
पत्थर पत्थर पथ में छल-दल ।
- कहां गए वो पागल बादल ?

बाड़ी बाड़ी खूब सजाते ,
आंगन आंगन फूल खिलाते ,
खेतों खेतों हंसते गाते ,
लिए आंख में करुणा का जल ।
- कहां गए वो पागल बादल ?

वो यौवन थे , वो सावन थे ,
वो जीवन थे , वो साजन थे ,
वो थे तो दिन मनभावन थे ,
उनकी याद है हर क्षण ,हर पल ।
- कहां गए वो पागल बादल ?

Friday, October 23, 2009

इस इतिहास में जिसमें सबकी पीठें घायल

पेड़ों पर गाऊं , नदियों पर छंद लिखूं !
या विघ्न-अभय महलों पर फेंक कमंद लिखूं ?

जब उधर भूख पर नई कथा बनती हो
मेरे विलास की रात इधर मनती हो
मैं इतना कभी तटस्थ नहीं हो सकता
तुम सुनो विषमता सुनो अगर सुनती हो
आहत पैरों तपती रेतों जब झुलस गया
तब क्या पपड़ल होंठों से रस मकरंद लिखूं !

है उधर तनी पीठों के पीछे गादी
इस तरफ सिर्फ रीढ़ों की बर्बादी
सर कहां उठे छत घुटनों से नीचे है
क्या जाने कैसे यहां बसी आबादी
कल यहां जले घर ,लुटीं औरतें ,युवक मरे
कैसे धुंधयाती बस्ती को सानंद लिखूं ?

ले गए लूटकर घर की जो मर्यादा
था अलंकरण का उन्हीं स्वजन का वादा
पूछे वजीर से कौन ,कहां हंै हाथी घोड़े
राजा खुद ही जहां बना हो प्यादा
इस इतिहास में जिसमें सबकी पीठें घायल
किसे मैं राणा और किसे जयचंद लिखूं ?
51183/81283